Sunday, May 30, 2010

इस रिश्ते को...

इस रिश्ते को क्या नाम दूं?
बहुत कहा,बहुत सुना
फिर भी है ये लम्बी ख़ामोशी
ये अजीब दूरी,ये करीबी

दोस्ती नहीं,शायद प्यार ही सही
कैसा मौसम,ऐसा एहसास
कुछ करने की ज़रूरत
यूँही बैठे रहने की चाह

बहुत मस्ती,थोड़ी घबराहट
बंधी सी इस आज़ादी से
कभी सोचती,कभी मुस्कुराती
यूँ मचलती,यूँ नाचती

इस लम्हे को समझना चाहती हूँ
कोई ख्वाब,कोई सच
छूना नहीं चाहती तुम्हे
ये तितली हमेशा के लिए उड़ गयी तो?

अँधेरे मैं सूरज हो
या शायद कुछ कम,कुछ ज्यादा
तुम्हारी ज़िन्दगी मेरे लिए खुली किताब
और मेरी आँखों के पीछे हैं बंद दरवाज़े
समझोगे कब?
इस रिश्ते को क्या नाम दूं?

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