Monday, February 23, 2009

क्यों?

क्यों रहते हैं हम किसी बंधन में?
क्यों चुपचाप सहते हैं यह तन्हाई?
क्यों समझते हैं अपने आपको
अकेला इस भीड़ भरी दुनिया में?
क्यों रहते हैं किसी डर में?

क्यों तस्सली देते हैं दुसरो को
जब ख़ुद घुट घुट कर मरते हैं?
क्यों होती हैं चेहरे पर मुस्कान
जब आत्मा रोती है?

क्यों कहते है किसी को अपना
जब उनसे ही फेर लेते हैं हर एहसास को?
क्यों रहते हैं किसी से पराये
जब जी चाहता है उनके करीब रहने को?

क्यों रहते हैं झिजक में
जब दिल उड़ने के ख्वाहिश रखता है?
क्यों मन को समझाते हैं
जब हर सापना टूट जाता है?

क्यों नही करते पूरा हर मन चाहे
जिससे खुशी मिल जाए?
क्यों देते रहते हैं अपना बलिदान
ताकि किसी और को कुछ सुख मिल जाए?

क्यों सोचते हैं की कोई नही है समझनेवाला,
कोई नही है जिस पे कुछ ऐसा बीता होगा?
क्यों अचानक से ये बंजारापन achcha लगने लगता है?
क्यों तोड़ना हर वो प्यारा रिश्ता अच्छा लगने लगता है?

कयु टूटता नही ये ग़म से रिश्ता?
क्यों बांटेते हैं खुशी हर किसी के साथपर दुःख के स्वार्थी हो जाते हैं?

क्यों लगने लगती है ज़िन्दगी अधूरी?
क्यों हर सफर कभी पूरा नही होता?
क्यों परदे के पीछे रहना पसंद हो जाता है?
क्यू किसी से नज़र मिलाना मुश्किल हो जाता है?

क्यों पूजते हैं किसी भगवन को
ताकि मन्नते पूरी हो जाए?
क्यों धिक्कारते हैं उसी ईश्वर को
जब सब चीन लिया जाए?

क्यों रोता है ये मन?
क्यों सँभालते नही हैं हम?
क्यों बनाते हैं मुश्किल इस छोटे जीवन को?
क्यों नही समझते हर इस बीतते लम्हे के महत्त्व को?

just a few thoughts that came to me one day...

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